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Kavita Kosh से
पहले वे स्त्री लिखते हैं
उन्हें लगता है कि
देवी लिखा है उन्होंने
देवी एक महान शब्द
फिर वे स्त्री को
सिरे से पकडकर
घसीटते हैं
कोई आवाज नहीं होती
बस लकीर रह जाती है शेष
कलाकार बताते हैं
कि यह एक कलाकृति है
संगीतकार उसे साधता है
सातवें स्वर की तरह
नास्तिक उसमें ढूंढता है
चीख की कोई लिपि
कवि वहां की रेत में
सुखाता है अपने आंसू
अब कलाकार नास्तिक कवि और संगीतकार
सब महान हो उठते हैं
इस तरह
एक महान शब्द की
घिसटन से
महानता की संस्कृति
जन्म लेती है।
1996
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