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य' शाम है / शमशेर बहादुर सिंह

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[ग्‍वालियर की एक खूनी शाम का भाव-चित्र : लाल झंडे, जिन पर रोटियाँ टँगी हैं, लिये हुए मजदूरों का जुलूस। उनको रोटियों के बदले मानव-शोषक शैतानों ने गोलियाँ खिलायीं। उसी दिन - 12 जनवरी 1944 की एक स्‍वर-स्मृति।]

य' शाम है
कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का।
लपक उठीं लहू-भरी दरातियाँ,
- कि आग है :
धुआँ धुआँ
सुलग रहा
गवालियार के मजूर का हृदय।



कराहती धरा
कि हाय मय विषाक्‍त वायु
धूम्र तिक्‍त आज
रिक्‍त आज
सोखती हृदय
गवालियार के मजूर का।


गरीब के हृदय
टँगे हुए
कि रोटियाँ लिये हुए निशान
लाल-लाल
जा रहे
कि चल रहा
लहू-भरे गवालियार के बाजार में जुलूस :
जल रहा
धुआँ धुआँ
गवालियार के मजूर का हृदय।
[1946]
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