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अरे वर्ष के हर्ष बरस तू{{KKGlobal}} बरस बरस रसधार {{KKRachna - निराला|रचनाकार=विजय कुमार|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>
अरे वर्ष के हर्ष बरस तू
बरस बरस रसधार
- निराला
जिन दिनों इस शहर में बरसता है पानी
मंद
फिर तेज
फिर मूसलाधार फिर मंद मंद
आसमान से उतरते हैं कुछ तर बतर फरिश्ते
सर झुकाए
भारी भारी साँसों के साथ
इस तरह इस तरह
 
इन बंद तालों के भीतर
लो जुआरियों के सारे पत्ते बिखर गए हैं !
भीगते हैं हम निष्कवच भीगते हैं
ऐसी एक धीमी फिर तेज
फिर मूसलाधार बारिश में
वे ट्रेफिक सिगनल
बेवज़ह मारे गए थे क्यों हम रोजनामचों में
 
बरसता है पानी
दूब की सिहरन में
जिन दिनों इस शहर में
पानी बरसता है मूसलाधार </poem>
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