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अरे वर्ष के हर्ष बरस तू
::बरस बरस रसधार :::- निराला
जिन दिनों इस शहर में बरसता है पानी
और गुम हम सब
तर बतर भीगते हुए सांवले सलेटी हम पत्थरों की भी यह अपनी गरिमा
धरती में इस तरह इस तरह
दूब की सिहरन में
जिन दिनों इस शहर में
पानी बरसता है मूसलाधार ।
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