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जल की कविता / प्रकाश

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मैं जल के तल में उतर गया

वहाँ जल नहीं जल का शब्द था

मैं जल के शब्द में उतर गया

वहाँ जल के शब्द में स्वयं जल था!

* * *

मैं जल को उसके नाम से पुकारता था

मैं उसके मुख पर जल फेंकता था



जल के चेहरे पर हरक़त होती थी

वह धीरे-धीरे नींद से बाहर निकलता था



मैंने जल को उसके नाम से पुकारता था

उसके प्राण लौटते थे!

* * *

मैंने जल को उच्चरित किया

भागकर मेरी जिह्वाि पर रस चला आया

मैं रस में डूबा हुआ था

बाहर जल का छिलका पड़ा हुआ था!

* * *

मैंने जल में झाँका

वहाँ जल से जल की रोशनी लिपटी हुई थी

मैं एक युगल को अलग-अलग नहीं पुकार सकता था

मैंने आवाज़ दी- 'जल-रोशनी!'

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