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जो सकति<ref>शक्ति</ref> क्यार अउतारू <ref>अवतार</ref> होयि,बड़े ताल की दाँती के बिरवा के जिउका जिउ जागा।स्याव का साँचु सरूपु होयि;देखिसि पानी की छाती पर वहे कि परछाँही पयिरयि।जिहि का घर मा परगासु होयिअपनयि रूपु निहारि बिरउनू अपने मन ते कहयि लाग,हाँ असिलि म्यहरिया वहयि आयि।अउ नीक म्यहरिया वहयि आयि।जो संत्वाख<ref>संतोष</ref> की प्यटरिया<ref>पिटारीमयिं तउ मयिं, गठरी</ref> हयियिहु अउरू कउनु,जो म्वारयि अस महिका घूरयि ?दुलहा के दुख मयि जान्यउँ सबु जरि- सुख भुँजि कयि अब हीरूयि-हीरू हिंयाँ रहिगा;मुलु उयि हीरउ मा साथी।लरिकादेख्यउँ कुछु-बिटियन कुछु का कलपु बिरिछु <ref>कल्पवृक्ष</ref> , का सब कुछु चपटा।जिहि के बरक्कती <ref>बरकत देने वालाबिरिछ राज तपु करयि लाग, लाभदायी</ref> हाथ होयिनथुनन ते स्वाँसा साधि-साधि,बसि ठीक म्यहरूआ वहयि आयि।सबयि बयारिन मूड़ु लड़ावयिं कब लागयि उनकी समाधि।जो तीनि तिल्वाक <ref>लोक</ref> घूमि आवयिपाला पर सिकुरयिं पानी मा, उस-उस दाँउॅ नहान करयिं,मुलु तहूँ म्यहरिययि बनी रहयि।जिहि की मरजाद सुर्जन <ref>मर्यादासूर्य</ref> अयिस पक्कीकी आगी मा देंही फँूकि-फँूकि जपु ज्ञानु करयिं।बिरऊ जस जस जोग करयिं, तस-तस सुँदरापा बाढ़ि रहा,जो सपन्यउ मा न तनिकि बिगरयिरस के लोभिन का उनहे तर र्याला लागि रहा।बसिझुण्ड-झुण्ड पंछी आवयिं पँखुरी-पातिन से खेलु करयिं, साँचि म्यहरूआ वहयि आयि।भॅवरा चहुँदिसि नाचि-नाचि फूलन के मुँहि का चूमि लेयिं।जिहि की कोखी<ref>कुक्ष, कोख</ref> ते जगु जलमादिन का नखरा दूरि होयि जब राति अँध्यरिया घिरि आवयि,जो सिरिहिटिपरछाहीं छपट्यायि<ref>सृष्टिलिपटना</ref> की महतारी हयि।रहयि, बिरऊ का जिउ कुछु कल पावयि।वह पुरूख रूप की पुन्नि अयिसिमुलु जस फिरिते भेरू होयि,जब जगर-मगर जग माँ जागयितब साँचु म्यहरिया फिरि वहयि किंगिरिया वहयि आयि।रागु,जो जलयि जिययि बिटिया, वहिनीक्वयिली गीतु बुनावयि लागयिं,चलयि पपिहरा साजि साजु।महतारीदिन, भउजी के ओहदा-भरी - भरी पवित्रता पूरि करयिमहिना, बरसयि क्यतनी सब आजु काल्हि मा बीति गयीं;जब सुघरि सुलच्छनि नारि होयि।पर परछाँही साथु न छाँड़िसि बिरवा की दुरूगति भयी।हाँ नीकि म्यहरूआ वहयि आयि।जो माता कहे ते महकि उठयिमहतारी वाले ब्वालन पर।जो ‘‘बिटिया’’, ‘‘बहिनी’’ नाउॅ सुने तेहँसि तन आखिर एकु अयिस दिनु आवा दुख- मन ते ल्वहँकि जायिबसि, नीकि म्यहरूआ वहयि आयि।जो मनई सुख का मनई मानयिबन्धनु टूटि परा,मुलु खुदए म्यहरूवयि बनी रहयि।बिरवा आपुयि रूपु ताल की छाती पर भहरायि गिरा।जो वहिका बोरीतालु बापु जी, अपनउ बड़ीअपनेलरिका का क्वॉरा <ref>वृत्त,लोकु पताल चला जायी;तब नीकि म्यहरूआ कहाँ आयि।बिटिया महतारी, मनई छोंड़े,अलग - अलग मीटिंग करि गोल घेरा</ref> हयि।क्यतना भगमच्छरू मचि जायी,मा कसि छीछाल्यदरि होति रही।नालीन्हिनि, नीकि म्यहरूआ असि न आयि।खोलि करेजे की क्वठरी तिहिमा तिहका पउढ़ायि दिहिनि।मनई म्यहरी विरवा मुकुति पायिगा जब ते सुखी होयि,मुलुतबते बुहु विद्याँह बनिगा, होयि म्यहरूवउ मनई ते।यह खइँचा तानी कहाँ नीकि,जो छायि रही पिरथी ऊपर।परछाहिउँ का, नीकि म्यहरिया यहयि आयि?स्वाचउ - स्वाचउ, द्याखउ - द्याखउ,बिटिया महतारिउ दुनिया की।लरिका तुम ते अकुतायि उठे,बुढ़ऊ बरम्हा जी खुद पूँछयि-‘‘का, रूपु म्यहरिया अयिसि आयि?’’छाँह के साथयि पानी मा मिलिगा।
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