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अभिलाष / पढ़ीस

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|रचनाकार=पढ़ीस
|संग्रह=
}}
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<poem>
काकनि जि जो हम हूँ पढ़ि पाइति।जण्टर मैन बनित छिनहे <ref>समय की माप सूचक - क्षण में</ref> मा-
पहिनिति उजल कोटु पैजामा;
लरिकन की महतारी ऊपर-
::कसि के हुकुम चलाइति। ठाठ गाँठि कै सहरै <ref>शहर को</ref> जाइतिबात-बात पर बात बनाइति
मुंसिफ साहब के दमाद ते-
::अबे-तबे बतलाइति। जानि बूझि अँगुठा अगुँठा धरवाइति,
लाला ते लम्बर जिखवाइति,
ठकुरन ते बड़कये खेत की-
::बड़ी रसीद लिखाइति। यहु फुटहि फुटही तकदीर क नकसा!खोलिति अपनै अलग मदरसा<ref>स्कूल, विद्यालय, पाठशाला</ref>
दुनिया वाले पढ़े लिख्यन का-
::टिल्ल‍इ तिल्ल टिल्लइ टिल्ल उड़ाइति। '''शब्दार्थ : छिनहे मा = क्षण में ।सहरै = शहर को</Poempoem>{{KKMeaning}}