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प्रीति-प्रसादी मिलै प्रियाजू! तो अपनो बड़भाग्य मनाऊँ॥2॥
चरन-चाकरी को उछाह उर नयन-नीर पद-जुगल-न्हवाऊँ।
अति रुचिसों रचि-रचि पद-जावक-पायँ पलोटि पुलकि हरसाऊँ॥3।
मेरी जीवन-धन तुम राधे! तव रति रस में मतिहिं बसाऊँ।
पद-रति ही की जोति जगा उर, तासों हिय को तिमिर नसाऊँ॥4॥
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