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विश्व चाहे या न चाहे / गोपालदास "नीरज"
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16:23, 30 नवम्बर 2014
ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में
कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई,
फिर
दीयों
दियों
का दम न टूटे,फिर
किरन
किरण
को तम न लूटे,
हम जले हैं तो धरा को जगमगा कर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे...
Sharda suman
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