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यह राह ज़िन्दगी की
::जिससे जिस जगह मिले
है ठीक वही, बस वही अहाते मेंहदी के
तुमको निहारती बैठेगी
::आत्मीय और इतनी प्रसन्न,
मानव के प्रति, मानव के
::जी की पुकार
::जितनी अनन्य!
लाखों आँखों से तुम्हें देखती बैठेगी
तुमको कन्धे पर बिठला ले जाने किस ओर
::न जाने कहाँ व कितनी दूर !!
तुम दौड़ोगे प्रत्येक व्यक्ति के
::चरण-तले जनपथ बनकर !!
वे आस्थाएँ तुमको दरिद्र करवायेंगी
पर, तुम अनन्य होगे,
::प्रसन्न होगे !!
आत्मीय एक छवि तुम्हें नित्य भटकायेगी