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Kavita Kosh से
यह राह ज़िन्दगी की
है ठीक वही, बस वही अहाते मेंहदी के
तुमको निहारती बैठेगी
मानव के प्रति, मानव के
लाखों आँखों से तुम्हें देखती बैठेगी
तुमको कन्धे पर बिठला ले जाने किस ओर
तुम दौड़ोगे प्रत्येक व्यक्ति के
वे आस्थाएँ तुमको दरिद्र करवायेंगी
पर, तुम अनन्य होगे,
आत्मीय एक छवि तुम्हें नित्य भटकायेगी