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आर्ट / संजय आचार्य वरुण

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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
म्हैं ताश खेलणों
नीं जाणूं, पण
बां रै लारै मण्ड्योड़ा
रंग बिरंगा फोटू
म्हनै घणा भावै।
म्हनै ठा नीं पड़ै
के कूण है बादशाह
कूण बेगम
कूण है चिड़ी
अर किसौ जोकर।
पण, एक बात है
ताश रौ घर म्हैं
सांतरौ बणावूं
सगळा पत्ता जोड़’र
ऊँचो घर।
घर में सब रै सागै
बादशाह अर
बेगम भी हुवै
पण फेर भी
बो घर
हवा रै एक ही’ज
लैरकै सूं
खड़खड़ाय
आय पड़ै नीचै
अर बिखर जावै
सगळा पत्ता
लोप हुय जावै
बादशाह अर बीं रौ महल।
पत्‍ता री ढिगली
म्हारै आंगणै में
बिखर जावै बेतरतीव
इयां लागै जाणें
कैनवास माथै
ऊंधी-सुंवी
आडी-तिरछी
बुरस मार’र
बणायोड़ौ हुवै कोई
‘मॉडर्न आर्ट’ रौ नमूनौ।
</poem>
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