भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
उडतौ पखेरू आसमान में
तिणका चूंच दबाए
नीड़ बणावूं आभै ऊपर
आगै बधतौ जाए।
च्यारूँ दिषावां खुली हुई है।
किण ने जाऊँ
समझ न आए
सोचै है पण, रूकै नहीं बो
उडतौ पंख फैलाए।
मन में जोश लैरका लेवै
आँख्यां में कीं
सुपना तैरै
पुन रै सागै ऊँचाई पर
उडतौ आस लगाए।
नीं सीख्यौ अर थकणौ अर थमणौ
बाधा आए
चलतौ जाए
बिना थक्यां पंछीड़ौ चालै
रात हुवै दिन आए।
</poem>