भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नतमस्तक करूँ प्रतीक्षा
झंझा सिर पर से निकल जायजाए!
मैं अनवरुद्ध, अप्रतिहत, शुचस्नात हूँ:
मैं तो नित्य उसी का हूँ जिस को
<span style="font-size:14px">७ मार्च १९६३</span>
Anonymous user