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याद नहीं / मनमोहन

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|संग्रह=जिल्लत की रोटी / मनमोहन
}}
<poem>
स्मृति में रहना
नींद में रहना हुआ
जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ
स्मृति में रहना<br>ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थीनींद में रहना हुआ<br>याद नहीं निमिष भर की रात थीजैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ<br><br>या कोई पूरा युग था
ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश स्मृति थी<br>याद नहीं निमिष भर की रात थी<br>या कोई पूरा युग स्पर्श में खोया हाथ था<br><br>किसी गुनगुने हाथ में
स्मृति एक तकलीफ़ थी<br>या स्पर्श में खोया हाथ था<br>जिसके भीतर चलता चला गयाजैसे किसी गुनगुने हाथ सुरंग में<br><br>
एक तकलीफ़ अजीब ज़िद्दी धुन थी<br>जिसके भीतर चलता कि हारता चला गया<br>जैसे किसी सुरंग में<br><br>
अजीब ज़िद्दी धुन थी<br>दिन को खूँटी पर टाँग दिया थाकि हारता चला और उसके बाद क़तई भूल गया<br><br>था
दिन को खूँटी पर टाँग दिया था<br>और उसके बाद क़तई भूल गया था<br><br> सिर्फ़ बोलता रहा<br>या सिर्फ़ सुनता रहा <br>ठीक-ठीक याद नहीं<br><br> आसानियाँ और मुश्किलें<br/poem><br> न कहना आसान है<br>और कहना मुश्किल<br>लेकिन कहते चले जाना<br>न कहने जैसा है<br>और काफ़ी आसान है<br><br> इसी तरह न रहना आसान है<br>और रहना मुश्किल <br><br> लेकिन रहते चले जाना<br>न रहने जैसा है<br>और काफ़ी आसान है<br><br> चाहें तो सहने के बारे में भी<br>ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है
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