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जब मानते है व्यापी जलभूमि में अनिल में
तारा-षषांक शशांक में भी आकाष आकाश मे अनल में
फिर क्यो ये हठ है प्यारे ! मन्दिर में वह नहीं है
वह षब्द शब्द जो ‘नही’ है, उसके लिए नहीं है
जिस भूमि पर हज़रों हैं सीस को नवाते