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विरह / जयशंकर प्रसाद

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यह सब फिर क्या है, ध्यान से देखिये तो
यह विरह पुराना हो रहा जाँचिये तो
हम अलग हुए है हैं पूर्ण से व्यक्त होके
वह स्मृति जगती है प्रेम की नींद सोके
</poem>
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