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माँ / मोहनजीत

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{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=पंजाबी के कवि
|संग्रह=आज की पंजाबी कविता / पंजाबी के कविसम्पादक-सुभाष नीरव}}{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyMaa}}
[[Category:पंजाबी भाषा]]
<poem>
मैं उस मिट्टी में से उगा हूँ
जिसमें से माँ लोकगीत चुनती थी
मैं उस मिट्टी में से उगा हर नज्म लिखने के बाद सोचता हूँ<br>-क्या लिखा है?जिसमें से माँ लोकगीत चुनती थी<br><br>कहाँ इस तरह सोचती होगी!
हर नज्म लिखने गीत माँ के बाद सोचता हूँपोरों को छूकर फूल बनतेमाथे को छूते-<br>सवेर होतीक्या लिखा है?<br>दूध-भरी छातियों को स्पर्श करतेमाँ कहाँ इस तरह सोचती होगी!<br><br>तो चांद निकलता
पता नहीं गीत माँ के पोरों को छूकर फूल बनते<br>का कितना हिस्सामाथे को छूते- सवेर होती<br>पहले का थादूध-भरी छातियों को स्पर्श करते<br>तो चांद निकलता<br><br>कितना माँ का
पता नहीं गीत का कितना हिस्सा<br>माँ नहाती तो शब्द ‘रुनझुन’ की तरह बजतेपहले का था<br>कितना माँ का<br><br>चलती तो एक लय बनती
माँ नहाती तो शब्द ‘रुनझुन’ कितने साज़ों के नाम जानती होगीअधिक से अधिक 'बंसरी' या 'अलग़ोजा'बाबा(गुरु नानक) की तरह बजते<br>मूरत देखकरचलती तो एक लय बनती<br><br>'रबाब' भी कह लेती थी
माँ कितने साज़ों पर लोरी के नाम जानती होगी<br>साथ जो साज़ बजता हैअधिक से अधिक 'बंसरी' या 'अलग़ोजा'<br>और आह के साथ जो हूक निकलती हैबाबा(गुरु नानक) की मूरत देखकर<br>उससे कौन-सा साज़ बना'रबाब' भी कह लेती माँ नहीं जानती थी<br><br>
पर लोरी के साथ जो साज़ बजता है<br>माँ कहाँ खोजनहार थी !और आह के साथ जो हूक निकलती है<br>उससे कौनचरखा कातते-सा साज़ बना<br>कातते सो जातीमाँ नहीं जानती थी<br><br>उठती तो चक्की पर बैठ जाती
भीगी रात का माँ कहाँ खोजनहार थी को क्या पता !<br>चरखा कातते-कातते सो जाती<br>उठती तो चक्की पर बैठ जाती<br><br>तारों के साथ परदेशी पिता की प्रतीक्षा करती
भीगी रात का माँ को क्या पता !<br>तारों के साथ परदेशी पिता की प्रतीक्षा करती<br><br> मैं भी जो विद्वान बना घूमता हूँ<br>इतना ही तो जानता हूँ<br>माँ सांस साँस लेती तो लगता<br>रब जीवित है!<br/poem>
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