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अरे बुझागड़ !
थारा जंतर जोतस अणुबम
कोरी फाड़ उधेड़ बैंतणी, कम सीणौ है
जग लखग्यौ पिंडताई री परघै पौची, पींदै तीणौ है

अरे मांनखा !
इण जुग जीवण री गत वेगी
पिण क्यूं डिगमिग थारा पगल्या, मन हीणौ है
डरप मती, दो हाथ मजूरी कांमधेण, धरती धीणौ है

अरे सूरमा !
जुग झाटक री धमक सुणी जद
घर क्यूं न्हाटै, कमर खुली क्यूं, रंग खीणौ है
भिचक मती, जीवण सारू पग-पग लड़णौ मरणौ जीणौ है

अरे जवांनी !
नर नारी री नस क्यूं निंवगी
लाल रगत री गरमी निठगी, सुर झीणौ है
भूल मती, इमरत मैली सागर मथणौ है, विस पीणौ है

अरे सुगायक !
नवै मिनख रै सादै सुर में
जन मैणत री राग सुणा, जद परवीणौ है
उळझ मती, जन रै जीवण में सांचौ धन, कपड़ौ कीणौ है

अरे बुझागड़ !
थारा जंतर जोतस अणुबम
कोरी फाड़ उधेड़ बैंतणी, कम सीणौ है
जग लखग्यौ पिंडताई री परधै पोची, पींदै तीणौ है
</poem>
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