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<poem>
ब्यावली बरी री कड़प
अर खुसबू सी
थूं
चैत रै मांय
अधपक्या आम रा सुवाद सी
थूं
चौमासै में टीबां माथै बैठ’र
लप भर खावतै मोरण सी
थूं
मझराता में
चिलकतै उजास में दारू सी
थूं म्हारै बारै
थूं म्हारै मांय।
</poem>
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ब्यावली बरी री कड़प
अर खुसबू सी
थूं
चैत रै मांय
अधपक्या आम रा सुवाद सी
थूं
चौमासै में टीबां माथै बैठ’र
लप भर खावतै मोरण सी
थूं
मझराता में
चिलकतै उजास में दारू सी
थूं म्हारै बारै
थूं म्हारै मांय।
</poem>