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<poem>
बस
आज सूं अठै सूं ई
बावड़ ज्याणू चाये म्हनै पूठो
क्यूं कै
म्हारै च्यारूमेर ऊभा है
अणचित्या केई दरसाव
म्हैं सावचेत हो
घणो सावचेत
नाडी री पाळ माथै बैठ’र
उणनै समंदर नी मान्यो
अपणायत नै ओढ’र
गिणतौ रैयो
बखत रा लाम्बा-लाम्बा डग
पण इचरज है
आयो जद कीं चेतो
सूखग्यो म्हारै
पगां रौ खून
बिखरग्यां बातां रा डूंगर
बेकळू रै उनमान
म्हैं अंगेजूं
आ पगां नाप्योड़ी धरती
म्हारै-सारू
अजाण पखेरू सी

म्हैं अंवेरूं
तर-तर खिरती
आसावां रै ओप नै?
अर सहेजूं
आं गळत्यां रा राफड़रासा नै
आवणाळी पीढी सारूं
म्हनै ठा है
घणो मुस्किल है
बखत रै तीखै दातां सूं
खुद नै अळगो करणो
बस आज सूं अठै सूं ईं
बावड़ ज्याणू चाये म्हनै पूठो
क्यूं कै
म्हारै च्यारूंमेर ऊभा है
अणचित्या केई दरसाव।
</poem>
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