{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
}}{{KKCatKavita}}<poem>बहुत दूर पर 
अट्टहास कर 
सागर हँसता है। 
अधर व्योम के। 
ऐसे में सुन्दरी ! बेचने तू क्या निकली है, 
अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर
सुकुमार वक्ष के फूलों पर ?
सरकार ! 
और कुछ नहीं, 
बेचती हूँ समुद्र का पानी। 
तेरे तन की श्यामता नील दर्पण-सी है, 
श्यामे ! तूने शोणित में है क्या मिला लिया ?
सरकार ! 
और कुछ नहीं, 
रक्त में है समुद्र का पानी। 
माँ ! ये तो खारे आँसू हैं, ये तुझको मिले कहाँ से ?n
</poem>