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कदमताळ / गोरधनसिंह शेखावत

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<poem>
म्हैं खुद कैवूं
तोड़ौ ईं भरोसे रै डूंगर नै
ई रै माथै चढतां-चढतां
गोडां रै मांय
पाणी भरीजगो

आं सबदां रा
अब अरथ पलटो
आंरी स्यांणप सूं
घणी नफरत
हुवण लागी
क्यूं कै अै सबद
घणा चालाक हुयगा

अब हरेक री
चरित कथा नै समझणै रौ
बखत नी
खून रै इतिहास नै
काटो
जठै जग थे काट सको
सांची मानो
मत राखो
आं उणियारां सारू हेत
सेवट
चोखौ है आं सूं परै रैवणौ
बडेरां री लीक माथै
चाल’र बड़ा नी बणोला
थे फालतू में
मुरदा भोम रा
नुवां अरथ खोजणो चावो

थानै सांच कैवूं
छेड़ा हटजावो
अळगा-साव-अळगा
कांई थारै
पसीनै में ताव नीं

संकळप नै
धोबा सूं उछाळो
सुरू करो अेक जातरा
बिना पीठ ठोक्यां

म्हैं अब भी कैवूं
आं बारणां-दरूजां सूं
अै पग मोड़ौ
डूंगर री बरोबरी
नीं सही
नाळा रौ खूंखाट
साव आपरो है
पछै नाळो बैवतो
नदी में मिलै या
बिचै सूख जावै

कीं म्हारी बात रौ ई
भरोसो करौ
गैलायां छोेड़ो
सज आवै ज्यूं
घोड़ै सवार हुवौ
म्हैं तो आ ई
कैय सकूं हूं
मत करो कदमताळ
म्हारा भंवर
मत करो कदमताळ
अेक ई ठौड़।
</poem>
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