भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नक्सौ / मोहन आलोक

1,258 bytes added, 17:07, 24 अप्रैल 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन आलोक |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRach...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन आलोक
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
इण पृथ्वी रौ
अेक नक्सौ हौ भगवान कनै
बीरै मांय
कई दरखत हा म्हारै मकान कनै

कई बरस हुया
लोगां बां दरखातां नै
काट लिया
अनै काट-पीट’र
आपस मांय बांट लिया।

बस बां दरखतां रौ कटणौ
हुयौ कै भगवान रै लेखै इण ग्रह रो
घटणौ।
अबै सरू है सोधभाळ
का’ल
भगवान रा कई कर्मचारी आया म्हारै कनै
म्हूं बुझ्या किया?
दरसण दिया ??
बियां तौ वै चुप रैया
भासा रै अभाव मांय,
पण म्हनै लाग्यौ
कै बै बापड़ा पृथ्वी नै ढूंढता फिरै हा
पृथ्वी रौ बो नक्सौ
हाथ मांय लियां।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits