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चिड़कल्यां / मुकुट मणिराज

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पल में बिगड़ जावै छै/सारा चितराम।
मातम मनावै छै चिड़कल्यां/पण रोबा अर
हांसबा कां’ा कांण यांकै पास कोईनै
नाळी-नाळी भाषा।
म्हनै लागै छै हाल/जुगां तांई न्हं कर सकैगी
कागलां सूं सामनो, नादान भोळी, ये चिड़कल्यां।
</poem>
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