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|रचनाकार=मालचंद तिवाड़ी
|संग्रह=
}}
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<poem>
थूं कठै आकास
उडार में,
कै पांख में ?
मुगत हां म्हे
कै हां, थारी कांख में,
बितरो ई तौ नीं थूं,
जितरो समावै,
म्हांरी आंख में ?
</poem>
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थूं कठै आकास
उडार में,
कै पांख में ?
मुगत हां म्हे
कै हां, थारी कांख में,
बितरो ई तौ नीं थूं,
जितरो समावै,
म्हांरी आंख में ?
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