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नूंवौ सप्तक / संतोष मायामोहन

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सा सूं सा तांई जावण री
भरपूर तजबीज करूं हूं
पण
जीवण री ऊंची नीची
पगडांड्यां
अधबिचाळै ई
भटकावै म्हनै
अनै बिचाळै ई
खूट जावै
म्हरौ जीवण-संगीत।
</poem>
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