भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
गोदी सूनी हो जाएगी, कितनी ही माताओं की,
और चूड़ियां भी उतरेंगी, कितनी ही अबलाओं की।
घिर आएंगी शिशुआंे शिशुओं पर भी, घोर घट विपदाओं की,
जबकि चलेगी भारत भू पर, वह आंधी अन्यायों की।