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किसान / चकोर

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अल्लाह नाम वालोदुखिया किसान हम हैं, सुन लो कथा हमारीभारत के रहने वाले,मस्जिद के तुम हो बंदेबेदम हुए, मंदिर के हम पुजारी।न दम है, बे-मौत मरने वाले।
हैं नाम उसके कितनेइंसान बन के आए, गो पाक इसी ज़मीं पर एक ही ख़ुदा है,हज़रत हुसैन वो हीहमसे मगर हैं अच्छे, वंशी थी जिसकी प्यारी।ये घास चरने वाले।
वह करबला में आयाचक्की मुसीबतों की, गोकुल में भी वही थादिन-रात चल रही है,गीता बनाई उसनेकरके पिसान छोड़े हमको, जिसकी अज़ां है जारी।हैं पिसने वाले।
कुरआन दुनिया है जो उसका, एक तन तो वेद भी उसी का, हम आत्मा हैं उसकी,‘प्रीतम’ न फ़र्क़ समझोलेकिन कुचल रहे हैं, दुनिया उसी की सारी।हमको कुचलने वाले।
अफ़सोस हाय! हैरत, किस पाप का नतीजा,
सबसे हमी हैं निर्धन, धन के उगलने वाले।
सर पर हैं कर बहुत-से, कर मंे न एक धेला,घर पर नहीं है छप्पर, वस्तर उधड़ने वाले। जुल्मो-सितम के मारे, दम नाक में हमारा,भगवान तक हुए हैं, पर के कतरने वाले। फुरसत नहीं है मिलती, इक साल काल से हैदाने बिना तरसते, नेमत परोसने वाले। ऐ मौज करने वालो, कर देंगे हश्र बरपा,उभरे ‘चकोर’ जब भी, हम आह भरने वाले! रचनाकाल: सन 19221930
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