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जो कुछ पड़ेगी मुझ पे मुसीबत उठाऊंगी,
खि़दमत करूंगी मुल्क की और जेल जाऊंगी।
जाकर किसी भी जेल में कूटूंगी रामबांस,
और कै़दियों के साथ में चक्की चलाऊंगी।
रचनाकाल: सन 1932
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