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Kavita Kosh से
भरे हुए दिल-से पके लाल फूल को देखो
जो भोरर भोर के साथ विकसेगा
फिर साँझ के संग सकुचायेगासकुचाएगा
और (अगले दिन) फिर एक बार खिलेगा
फिर साँझ को मुंद जायेगा ।जाएगा।
और फिर एक बार उमंगेगा
तब कुम्हलाता हुआ काला पड़ जायेगा ।जायेगा।
पर मैं--वह मैं—वह भरा हुआ दिल--दिल—
क्या मुझे फिर कभी खिलना है ?
जिस में (यदि) हँसना है
वह भोर ही क्या फिर आयेगा ?
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