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दश दिश व्याप्त प्रणव त्रिवृता व्याहृति सप्तक सह व्यक्तश्याम वरन, दृग अरून, तरुन शशि शीश विराजितदश अवतार भार भूतल केर हरण तीनि नयन, मधुवयन, रतन सिंहासन राजितकरथि चारि भुज असि - खेटक पाशांऽकुश धारनमातंगी पद भजिअ चहिअ यदि भय हेतु प्रसक्तनिवारनमन समेत दश कर्म मतंग उत्तंग अति अंकुश ज्ञान इन्द्रिय कृत दशविध पापक विमल मतिविभु मानव दश रूप हतल महिमेँ, महि मे नित व्यापउन्मद उद्गत प्रेम रति मातंगी पद - कमल गति
1. मीन कमला -महाप्रलय मे जलधि बीच छल डुबइत पृथ्वी तत्त्वबीज मात्र गलइत छल बचइत कोना जीव निःसत्त्व?श्रुति क यावतो ऋचा असुर भौतिक क द्वन्द्व पड़ि लुप्तआदि मानव क नौका डूबल सृष्टि मात्र छल सुप्तअणु रहितहुँ ब्रह्माण्ड भाण्ड केँ भरि निज रूपेँ पीनमहामीन अवतार करथि उद्धार वेद-पथ छीन 2. कक्छप -अमृत विष क मिश्रण सँ जगत क सागर सलिल विषाक्तविनु मंथन नहि निकसत गुण-मणि तत्त्व-रत्न विख्यातशेष रज्जु गुणकनक कान्ति, मंदर मंथकौशेय वसन भूषित, असुर-सुर बिच संघर्षनितम्बिनीफलित, भरथु पृथ्वीकमल पानि वर -तल केँ पुनि श्रमबल सकल सहर्षकमठ पीठ आधारक बिनु नहि सभव मथन कर्मकच्छप रूप जगत्पति पति राखथु थपइत श्रुति धर्म।। 3. वराह -अवनी लीन महासागर मे अखिल जीव दिग्-भ्रान्तजड़ जल तत्त्व उमड़ि आयल जत भूतल-सूतल श्रान्तकनकलोचन क दृष्टि सृष्टि केर करइत नित संहारदिशि-दिशि एक शब्द-धुनि सुनि पड़इत छल हाहाकारमहावराह रूप धय दन्तावलिपर धरणी धारिपुनरुद्वार करी पुनि धरतीपर श्रुति-मत संचारि 4. नरसिंह -नरक ज्ञान निर्मलअभय दानि, पशु सिंह क सिंहक बल विज्ञानविनु समन्वयेँ प्रह्लादित नहि जगती केर कल्यानयदि हिरण्यहि क उपवर्हण लय माथ सुप्त मनुजत्वनिश्चय लोक शोक सँ स्तंभित ज्वलित वह्नि निःसत्त्वसिर हिम किरीटिनीनरयुग्म -हरि बनि नख उर विदारि कनकक अणु कण विस्फोटकरइत, हरइत जगत क पीड़ा, प्रभु महिमा बड़ि गोट 5. वामन युगल करिवर -दान धर्महु क मर्म दया थिक, अहंकार असुरत्वसाधन शुभ अशुभहि मे परिणत, यदि च साध्य निज स्वत्वकर्म रहौ कतबहु रुचिकर कनक -रोचित शोचनीय यदि छùकलश जल धारायज्ञ अज्ञहि क थिक जहि मे नहि हो साधित अध्यात्मवलि क कलेवर लंबित कतबहु, वामन लघु पद नापिदेथु पठाय पताल युद्ध बिनु, मति बल सुर हित थापि 6. परशुराम -रक्षा - दीक्षा पाबि चलथि पथ भक्षणहि क धय नीतिस्नपित नित्य कमला वितरथि सम्पदा उदाराबुझथि कसलासनि कमलालया कमल जे थिक पद योग क हित, भोग क पथ अनरीतिकिछु जनि आलयाज्ञान क मस्तक सँ बढ़ि-चढ़ि बुझि सहस गुणित भुज-शक्तितनिक बिनाशक हित नित परशु उठाबथि पुरुष प्रसक्तसप्त व्याहृति क त्रिपदा पढ़इत विप्र राम निश्छत्रधरइत छथि अवतार, तनिक तनि पद चढ़बी श्रद्धा-पत्र 7. राम -जन्म महीसुर - कुल लय शिव - पद रखितहुँ भक्ति अनन्तकिन्तु रूप - लम्पट कामुक निर्दय खल प्रकृति दुरन्तजनस्थान केँ जारि-उजाड़ि बसावय असुर स्थानप्रतिष्ठान ऋषि - मुनि कमल विदित तकरा बनबय समसानदशमुख-वध हित दशरथ - सुत श्रीराम तानि धनु-वाणयुग-युग जनमि करथि निरवधि वधि सकुल असुर निष्प्राण 8. कृष्ण -योग नष्ट छल चलित पुरातन, बंधु - बधु दुर्योगधर्म क क्षेत्र कुरु क क्षेत्रहु छल द्वेष - राग केर रोगछिन्न - भिन्न भारत अनुशासन, शान्ति क पर्व न शेषक्रान्ति हेतु श्रीकृष्ण पांचजन्य क ध्वनि फूकल देशनाश नियत छल निर्माण क हित पूर्ण रूप अवतीर्णएकतन्त्रमय कयल महाभारत जे कीर्ण-विकीर्ण 9. बुद्ध -यज्ञ - वेदिका पर सर्वस्व समर्पण होम विधानबलि देव’क थिक स्वार्थ-भोग केर श्रौत मर्म संधाननिगम मंत्र अछि आगम तंत्र क रूप बिसरि गेल लोकबोध देल पुनि बुद्ध आबि, सहजहिँ हिंसा केर रोकजा धरि जातक सत्त्व न बोधेँ परम बुद्ध बनि जायता धरि बुद्धि बोध देबा लय बुद्धक चलत निकाय 10. कल्कि -नव-नव अवतरणहु नहि देखल, भेल म्लेच्छ-पथ रुद्धदिश-दिश लुबधल लुब्धक दल, धरती धरि नहि परिशुद्धतखन दिव्य करवाल गहल कर, करबा लय संहारकलि क कलुष - कल्मष मेटबा लय दशम कल्कि अवतारनहि अनाथ क्यौ जगन्नाथ युग - देवता क अवतारजगत कलेश क लेश न शेष अशेष शक्ति संचारआश्रया उरसा शिरसा मालया
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