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|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला
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<poem>
प्रिये !
उन आन्तरिक आत्मीय क्षणों में
तुम्हारा प्रतिक्रिया शून्य और
निष्प्राण पडा रहना
विचलित करता है मुझे
सोचता हूं
क्या सचमुच
तुम आधा अंग हो मेरा ?
या
शव आसन सी तुम्हारी मुद्रा में
वात्सायन के प्रभाव में
आधा अधूरा ही मै
कर रहा हूं
शव साधना
</poem>
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