भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
{{KKCatNavgeet}}<poem>
दरवाज़े तोड़-तोड़ कर
घुस न जाएँ आंधियाँ मकान में,
आँगन की अल्पना सँभालिए ।
बेमौसम शीतकाल में
झागदार मेघ उग रहे
नर्म धूप के उबाल में
छत से फिर कूदे हैं अँधियारे
चन्द्रमुखी कल्पना स~मभालिए ।
शोरमुखी एक खलबली
उपवन-सी आस्था हुई
पहले से और जंगली
दीवारों पर टंगी टँगी हुईपँखकटी प्रार्थना सँभालिए ।पंखकटी प्रार्थना संभालिए।</poem>