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|रचनाकार=संतलाल करुण
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|संग्रह=अतलस्पर्श / संतलाल करुण
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<poem>दिल के मकाँ में यार कोई दिलकुशा मिलता नहीं
भीगा पड़ा है आशियाँ अब दिलशुदा मिलता नहीं |

हमने वफ़ा में बाअदब जानो-ज़िगर सब दे दिया
उनकी वफ़ा, चश्मो-अदा, दिल गुमशुदा मिलता नहीं |

उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर
ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं |

उनकी वफ़ा के माजरे, बेबस्तगी पे क्या कहें
उन पे फ़ना दिल रोज़ होता दिल जुदा मिलता नहीं |

यों दिलज़दा मेरा फ़साना, दिल लगाना बेक़दर
जो लापता ढूढें कहाँ दिल गुम हुआ मिलता नहीं |
</poem>
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