{{KKCatMaithiliRachna}}
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'''(1)''' साँझक सिन्नुराह अन्हारमे डूबल गंगानदीक घाट पर ठाढ़गंगा नदीक घाटपरठाढ़ होइत छी,नहि मोन पड़ैत अछि ओ छोट -छीन धार ...नाह पर नाहपर झिझरी खेलाएबखेलायबमलाह -गोंढ़िक गीत गाएब गायब बहकल स्वरमेसिनेह -पोसल कुकूर जकाँघाट-बाट घुरिआएब घुरिआयब नहि मोन पड़ैत अछि।भगवती -थानक ओ गोल गुम्बदबला -गुम्बदवला मन्दिर,आ, मन्दिरक स्वामिनी....ओ शान्त -स्निग्ध मुखाकृति
ओ प्रार्थना-मन्त्र
ओ सभटा बिसरि गेल अछि, जकरा कारणें,कारणेँ
हमरा हृदयमे कविता छल,
आ, हमर आँखिमे हिरण्यगर्भ इजोत !
'''(2)''' साँझक सिन्नुराह अनहारमे अन्हारमे डूबल गंगा नदीक घाट पर गंगानदीक घाटपरठाढ़ होइत होयत छी,तँ तेँ लगैत अछि, शरीरसँ बहरा क’ बहारक’ हमर ओ पूर्व-जीवनपूर्वजीवनहमर ओ पूर्व-जीवनपूर्वजीवनअठबज्जी स्टीमर पर चढ़ि क’ स्टीमरपर चढ़िक’ जा रहल अछि।अछि
ओहि पार-
हमरा शरीरसँ विदा ल’ !ओहि पारओहिपार, आ गंगाक एहि पारमे आब पचीस बर्खवर्खआ , दू जन्मान्तरक अन्तर अछि ... '''(3)''' सुखा गेल होयत ओ चित्रलिखित सन छोट धारओ शान्त-स्निग्ध मुखाकृतिआत्मग्लानिसँ भ’ गेल होयत ज्वालामुखी...ओहि गामक सभ लोक बरौनी-कारखानामे, अथवाकलकत्ता-जमशेदपुर...बचि गेल होयत केवल स्त्री-समाजमनीआर्डरक प्रतीक्षाआ, बीतल वयसक स्मृतिमे व्यस्त!
3सुखा गेल होएत ओ चित्र लिखित सन छोट धारओ शान्त स्निगध मुखाकृति आत्म''(मिथिला मिहिर: ५-ग्लानिसँ भ’ गे होएत ज्वालामुखी....ओहि गामक सभ लोक बरौनी६-कारखाना मे,अथवा कलकत्त जमशेदपुर....बचि गेल होएत केवल स्त्री-समाजमनिआर्डरक प्रतीक्षाआ, बीतल वयसक स्मृतिमे ब्यस्त !६६)''
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