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|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
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<poem>
एक   ही  पन्ने  में आ जाती,
इस  जीवन  की  सारी  गाथा ।
तुमनें  इतने ग्रंथ  लिखे  और,
जाने उनमें  क्या  लिख डाला ।
ढोंग  रचा  खोने  पाने   का,
लोभ मोह  से  जांचा  परखा ।
भय से रिक्त  नहीं  हो  पाये,
सुख चाहा पर दु:ख को पाला ।
</poem>