Changes

ऐ युग / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

791 bytes added, 18:53, 13 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>ठिलता रहा मेरा वजूद
घर की पनचक्की पर
बरसों से नहीं युगों से नहीं
कल्पों से भी नहीं
शायद सृष्टि के वजूद से
भी पहले से

इधर की दुलत्ती
उधर की दुलत्ती

धीरे-धीरे बना दिए
इन सभी ने आज शक्तिशाली
मेरे पांव ऐ युग
तुम्हें रोंदने के लिए...!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,957
edits