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|रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']]
}}
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<poem>
आदमी गिरकर मरा है रस्सियों की राह से
शह्र सारा घिर गया है दूसरी अफ़वाह से
मुझसे क्यों माँगा फ़क़ीरों ने ख़ुदा को छोड़ कर
रास्ते भर सोचता आया इबादतगाह<ref>पूजा का स्थान</ref>से
कल मेरी बीवी भी उसकी दाश्ता<ref>दासी, सेविका</ref> हो जाएगी
काम चल सकता नहीं ख़ाली मेरी तन्ख़्वाह से
एक दिन वो ख़ुद समन्दर में कहीं खो जाएँगे
देखते रहते हैं जो लहरों को बन्दरगाह से
आपको तो बस हमेशा आक़बत<ref>परलोक</ref> की फ़िक्र है
ज़िन्दगी से तो नज़र आते हैं लापरवाह से
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आदमी गिरकर मरा है रस्सियों की राह से
शह्र सारा घिर गया है दूसरी अफ़वाह से
मुझसे क्यों माँगा फ़क़ीरों ने ख़ुदा को छोड़ कर
रास्ते भर सोचता आया इबादतगाह<ref>पूजा का स्थान</ref>से
कल मेरी बीवी भी उसकी दाश्ता<ref>दासी, सेविका</ref> हो जाएगी
काम चल सकता नहीं ख़ाली मेरी तन्ख़्वाह से
एक दिन वो ख़ुद समन्दर में कहीं खो जाएँगे
देखते रहते हैं जो लहरों को बन्दरगाह से
आपको तो बस हमेशा आक़बत<ref>परलोक</ref> की फ़िक्र है
ज़िन्दगी से तो नज़र आते हैं लापरवाह से
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