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पंथ होने दो अपरिचितप्राण रहने दो अकेला
और होंगे नयन सूखेतिल बुझे औ’ पलक रूखेआर्द्र चितवन में यहांशत विद्युतों में दीप खेला अन्य होंगे चरण हारेऔर हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे दुखव्रती निर्माण उन्मदयह अमरता नापते पदबांध देंगे अंक-संसृतिसे तिमिर में स्वर्ण बेला दूसरी होगी कहानी शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी; आज जिसपर प्यार विस्मृत ,जिस पर प्रलय विस्मितमैं लगाती चल रही नित,मोतियों की हाट औ, औ’चिनगारियों का एक मेला हास का मधु-दूत भेजोरोष की भ्रू-भंगिमा पतझार को चाहे सहे जो
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल , स्वप्न-शतदल,जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!
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