लेखक: [[श्यामनन्दन किशोर]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर]]}}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>शुद्ध सोना क्यों बनाया प्रभु मुझे तुमने,कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जो मिला तुममें, भला क्याभिन्नता का स्वाद जाने,जो नियम में बँध गया,वह क्या भला अपवाद जाने!
शुद्ध सोना क्यों बनायाजो रहा समकक्ष करुणा की मिली कब छाँह उसको, प्रभु, मुझे तुमने,<br>कुछ मिलावट गिरावट चाहिए गलहार उद्धार होने के लिए।<br><br>लिए!
जो मिला तुममें भला क्या<br>भिन्नता का स्वाद जानेअजन्मा हैं,<br>उन्हें इसइन्द्रधनुषी विश्व से सम्बन्ध क्या!जो नियम में बंध गया<br>न पीड़ा झेल पाएँ स्वयं,वह दूसरों के लिए उनको द्वन्द्व क्या भला अपवाद जाने!<br><br>
जो रहा समकक्षएक स्रष्टा शून्य को शृंगार सकता है, करुणा की मिली कब छांह उसको<br>मोह कुछ गिरावट तो चाहिए, उद्धार साकार होने के लिए।<br><br>लिए!
जो अजन्मा है, उन्हें इस<br>इंद्रधनुषी विश्व से संबंध क्यानिदाध नहीं प्रवासी बादलों सेखींच सावन-धार लाता है!<br>जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं,<br>दूसरों निर्झरों के लिए उनको द्वंद्व पत्थरों पर गीत लिक्खेक्यानहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!<br><br>
एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है<br>हैं अभाव जहाँ, वहीं हैं भाव दुर्लभमोह कुछ तो विकर्षण चाहिए, साकार ही प्यार होने के लिए!<br><br>
क्या निदाघ नहीं प्रलासी बादलों से<br>(23.9.1974)खींच सावन धार लाता है!<br>निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे<br>क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!<br><br> है अभाव जहाँ, वहीं है भाव दुर्लभ -<br>कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए!<br><br> वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो,<br>मधुर झंकार लगती और भी!<br>विरह के मधुवन सरीखे दीखते<br>हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी!<br><br> साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान!<br>चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए!<br><br/poem>