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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
पढ़ के तू जिन को अकेले में हंसा करता है
ऐसे ख़त मैं ही नहीं, तू भी लिखा करता है
यूं भी रखता है यह दिल तेरी मुहब्बत का लिहाज़
जो भी करना हो गिला, ख़ुद से किया करता है
अजनबी मैं तुझे समझूं तू मुझे ग़ैर कहे
ऐसे माहौल में तू मुझसे मिला करता है
मैं कि बरसों तुझे सूरत न दिखाऊँ अपनी
तू कि हर शाम मिरे साथ हुआ करता है
तू मिरी क़ैद में है, मैं भी तिरी कै़द में हूँ
देखें अब कौन किसे पहले रिहा करता है
दिल में यूं छुप गईं रिश्तों की दरारें “ज़ाहिद”
रंग चेहरे का वही है जो हुआ करता है
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|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
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<poem>
पढ़ के तू जिन को अकेले में हंसा करता है
ऐसे ख़त मैं ही नहीं, तू भी लिखा करता है
यूं भी रखता है यह दिल तेरी मुहब्बत का लिहाज़
जो भी करना हो गिला, ख़ुद से किया करता है
अजनबी मैं तुझे समझूं तू मुझे ग़ैर कहे
ऐसे माहौल में तू मुझसे मिला करता है
मैं कि बरसों तुझे सूरत न दिखाऊँ अपनी
तू कि हर शाम मिरे साथ हुआ करता है
तू मिरी क़ैद में है, मैं भी तिरी कै़द में हूँ
देखें अब कौन किसे पहले रिहा करता है
दिल में यूं छुप गईं रिश्तों की दरारें “ज़ाहिद”
रंग चेहरे का वही है जो हुआ करता है