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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
याद की शिद्दत बढ़ते बढ़ते दिल का दर्द बढ़ा है
रौशनियों के साथ साथ साया भी नाच उठा है
अपने ही लोगों से हमको जब भी काम पड़ा है
अपना सर अपने पैरों पर लाखों बार झुका है
मैंने तो हंस कर टाली थीं उसकी बातें लेकिन
वो अब तक मेरे हंसने का कारण ढूंढ रहा है
आने वाली नस्ल में शायद लड़ने की हिम्मत हो
आज तो इंसां झूठ के आगे घुटने टेक चुका है
अपना मुक़द्दर ख़ुद ही लिखेंगे “ज़ाहिद” ये मतवाले
सच के लिए हर सौदाई ने सर पे कफ़न बांधा है
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याद की शिद्दत बढ़ते बढ़ते दिल का दर्द बढ़ा है
रौशनियों के साथ साथ साया भी नाच उठा है
अपने ही लोगों से हमको जब भी काम पड़ा है
अपना सर अपने पैरों पर लाखों बार झुका है
मैंने तो हंस कर टाली थीं उसकी बातें लेकिन
वो अब तक मेरे हंसने का कारण ढूंढ रहा है
आने वाली नस्ल में शायद लड़ने की हिम्मत हो
आज तो इंसां झूठ के आगे घुटने टेक चुका है
अपना मुक़द्दर ख़ुद ही लिखेंगे “ज़ाहिद” ये मतवाले
सच के लिए हर सौदाई ने सर पे कफ़न बांधा है
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