भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'गीत, मेरा कोई अपना नहीं.'
'क्या? भुला तेरे मन का हिरना कहीं.'
'नहीं, गंध परि परी आई कभी अंगना नहीं.'
मैंने डूबती हुई सूनी बदली से कहा-