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मैंने कहा / रामनरेश पाठक

No change in size, 19:09, 2 नवम्बर 2015
'गीत, मेरा कोई अपना नहीं.'
'क्या? भुला तेरे मन का हिरना कहीं.'
'नहीं, गंध परि परी आई कभी अंगना नहीं.'
मैंने डूबती हुई सूनी बदली से कहा-
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