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बरसों से सूखे
कंठ के कुए में
कोई तस्वीर धुँधली सी
है फड़फड़ाती
किसी दिन
नहीं होगी
यह भी
तब क्या मुझे ही
अंतिम बार
कूदना होगा
</poem>
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बरसों से सूखे
कंठ के कुए में
कोई तस्वीर धुँधली सी
है फड़फड़ाती
किसी दिन
नहीं होगी
यह भी
तब क्या मुझे ही
अंतिम बार
कूदना होगा
</poem>