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{{KKRachna
|रचनाकार=संजय पुरोहित
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}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>थूं हुवैलो
राजा थारै म्हैलां रो
हुवैला थारा चाकर हजार
सलूट ठोकता हजूरिया
हुवैला सोनल कुर्सी थारी
पण राखीजै याद
म्हासूं राड़ करै मति
म्हैं हु सुरसत रो भगत
म्हैं हूं कवि
करूं हूं आखरां नै सिद्ध
अर बणाऊं अंगारा
राखूं म्हारै वस
जिण दिन थूं आयौ
रेख में म्हारी
म्हारै सबदां रा हजारूं बूकिया
पटक न्हाखैला थारै
बेकळू रै कूड़ै म्हैल नै
करैला थन्नै
थारै उजळा गाभा में नागौ
राखीजै याद
म्हासूं राड़ करै मति
</poem>
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