भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
40 bytes removed,
19:50, 5 दिसम्बर 2015
{{KKCatKavita}}
<poem>
युद्ध के बादओह यह धरती की प्रजातिबाँध दिया गया था मुझेढोल बजाए गए , दरवाज़े बन्द थेज़ंजीरों सेजैसे गूँथी जाती है चोटीकारवाँ सराय में
मैं एक घोड़े पर सवार होकरमोमबत्ती, ब्रेड का एक टुकड़ा, सूप की एक डिश उत्तर से आई थीउपहार बनकरऔर जई की एक बोरी घोड़े के लिए
गुलामों दरख़्तों की मण्डी परछांईयों वाले आँगन मेंमेरे सिले हुए होंठकभी नहीं खुलेपूरे तीन दिन
फिर एक व्यापारी की आवाज़ के साथबिखर गई मेरी देहअजनबियों के हाथों मेंकारवाँ तीन हजार ऊँटों का...
मैं इन्तज़ार करती रहीदीवार पर एक कुल्हाड़ा, युद्ध वाला कुल्हाड़ाकि मेरा मालिकमेरी ज़ंजीरें खोलेकिसी उजाड़ स्वप्न मेंफ़ायरप्लेस की वजह से शरीर गर्म हैं
उसकी नज़रें झुकीं और चन्द्रमा बढ़ रहा है मानो निश्चित कर रहा हैनीचेताकि ठीक से देख सके मुझेपर्दे में एक नया दिवसकाल ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader