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अद्भुत / आदित्य शुक्ल

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<poem>बहुत दूर
बहुत दूर हूँ अद्भुत से
वो अद्भुत उस पार क्षितिज पर नज़र आता है
इस लम्बी/गहरी/चौड़ी खाई के पार का क्षितिज
सूरज जहाँ अविराम जी रहा है
खूबसूरत झील घर में रह रहा है
वह उस पार का अद्भुत है मेरा पहला और आखिरी लक्ष्य
मैं खाई में भर रहा हूँ पानी
भर जाए तो तैर कर जाऊं सूरज के घर
खाई भर पानी तो भर रहा हूँ
दिन ब दिन पानी हुआ जाता हूँ खुद ब खुद अद्भुत की इस यात्रा में.
</poem>
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