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ईश्वर-निरीश्वर / आदित्य शुक्ल

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<poem>ये जो ईश्वर की बात करती हो तुम
और मैं निरीश्वर की
ये असल में हमारी अपनी-अपनी शरण-स्थलियाँ हैं,

ये जो झगड़ा है प्रेम-अप्रेम का,
असल मे
हमारे थके-हारे दिलों का आरामगाह है.
कहो कि हमारी आँखें अब भी एक-दूसरे के लिए तड़पती हैं
कहो कि हमारे अपने-अपने हाथ
हमारे एक दूसरे की नरम आंखों के लिए अब भी तरसते हैं.....

ये जो ईश्वर की बात करती हो तुम
और मैं निरीश्वर की,
हमारे अपने अपने डर भय हैं
हमारे अपने अपने दिलों का अंधेरा-उजाला है बस.

</poem>
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