भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विदेह में देह / अर्चना कुमारी

1,266 bytes added, 04:57, 8 दिसम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>किश्तों में मिली जिन्दगी के-
रंग बराबर रहे हरदम
कि जाना स्वीकृत करने के बाद
आने का आह्लाद संयत हो गया
कुछ निशान शेष खुरचने के
स्पर्श के नाखूनों के
नकार दिया करीबियों को
बचाए रखा संदेह
जिज्ञासा नहीं बची
जानने जैसी सामान्य बातों में
इतना समझ आते ही
कि गलत है जो भी है
कच्ची उम्र ने गाँठ बाँध ली कसकर
कि बन्द कर ली आँखें
मूँद लिए कान
लब सी लिए...............
उम्र का बोध लिए अबोध रही लड़की
सुलझा रही रहस्य देह का
उसने विदेह होना चुना था कभी !!!</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits