भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>पानी में आग लगी
पनघट चुप खड़े रहे
बालू में गड़े रहे

लपटों में घूम-घूम
मछली के पाँव जले
झुलसी चट्टानों को
राख मिली नाव-तले

अँधियारी घाटी में
सीपी-दिन पड़े रहे
बालू में गड़े रहे

बगुलों की टोली ने
सारे जल नाप लिये
धुंध-घिरी लहरों को
पंखों से ढाँप लिये

मूँगे के टापू पर
लंगर बन अड़े रहे
बालू में गड़े रहे
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits